अभी नहीं ……………… 41 साल पहले भी हुआ था न्याय की देवी’ की मूर्ति में अहम बदलाव
सीजेआई से पहले इन्होंने किया था बदलाव
नई दिल्ली (टीवी न्यूज़ इंडिया)। भारतीय अदालतों में दिखने वाली ‘न्याय की देवी’ की मूर्ति में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड के आदेश पर हुए अहम बदलाव की चर्चा काफी हो रही है। मूर्ति के वस्त्रों में बदलाव हुआ है। पहले ‘न्याय की देवी’ की आंखों पर पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब पटटी को खोल दिया गया है। हाथ में तलवार की जगह संविधान रखा गया है। लेकिन क्या आप जानते हैं, तलवार से लेकर संविधान तक हुए बदलाव का आगाज 41 साल पहले ही राजस्थान के जयपुर में हो चुका था।
जयपुर के डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस कोर्ट में न्याय देवी की प्रतिमा में अहम बदलाव कर दिया गया था। यह बदलाव कोर्ट के पूर्व जुडिशल मजिस्ट्रेट पदम कुमार जैन ने कराया था। न्याय की देवी की मूर्ति के डिजाइन को ‘न्याय के एक नए युग’ की शुरुआत के रूप में भले ही देखा जा रहा है, लेकिन जयपुर ने 26 अप्रैल 1983 को अपने जिला और सत्र न्यायालय में इसी तरह का बदलाव लागू किया था।
इस बदलाव के तहत मूर्ति के एक हाथ में तलवार की जगह संविधान रख दिया गया, लेकिन आंखों पर पट्टी बरकरार रखी गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट के तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट जैन की ओर से मूर्ति में यह बदलाव किया गया था। जैन मूर्ति स्थापना के लिए अधिकृत निर्णय लेने वाली संस्था का हिस्सा थे। तब तलवार की जगह संविधान की प्रति रखने के कदम ने एक बड़ी बहस भी छेड़ दी थी। कुछ लोगों का तर्क था कि ग्रीक पौराणिक कथाओं के हिसाब से न्याय की देवी के पास तलवार होनी चाहिए।
इस पर तत्कालीन न्यायिक मजिस्ट्रेट जैन ने कहा है कि, “इस पर मैंने तर्क दिया था कि न्याय की देवी न केवल लोगों को दंडित करती हैं, बल्कि उन्हें बरी भी करती हैं। वह बताते हैं कि एक और बहस इस बात पर थी कि देवी को कौन सी किताब पकड़नी चाहिए, क्योंकि भारत में कोर्ट सिविल और क्रिमिनल मामलों के लिए अलग-अलग संहिताओं का पालन करते हैं। इस जैन ने कहा, “आखिरकार, यह फैसला लिया गया कि न्याय की देवी को भारतीय संविधान का प्रतिनिधित्व करने वाली पुस्तक पकड़नी चाहिए, क्योंकि न्यायालय इसी मौलिक दस्तावेज पर स्थापित होते हैं। जैन को न्याय की देवी की पुनर्रचना की प्रेरणा पीएचडी पर काम करते वक्त मिली थी। उस वक्त उनकी नजर रोमन पौराणिक पात्र “जस्टिटिया” पर पड़ी, जो एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार पकड़े हुए थीं और उनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। उनका मानना था कि न्याय की देवी के लिए तलवार पकड़ना गैर वाजिब है, क्योंकि जज और मजिस्ट्रेट न केवल लोगों को दंडित करते हैं, बल्कि उन्हें बरी भी करते हैं।
जब जयपुर में नई न्याय की देवी की मूर्ति लगाई गई थी, तब उनकी आंखों पर पट्टी बांधने और तराजू थामे रहने को लेकर सवाल उठाए गए थे। जैन ने कहा, “इस पर मैंने कहा कि आंखों पर पट्टी निष्पक्षता का प्रतिनिधित्व करती है, यह सुनिश्चित करती है कि किसी व्यक्ति की संपत्ति, शक्ति या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना किसी पक्षपात या पूर्वाग्रह के न्याय दिया जाए। तराजू सबूतों को तौलने का प्रतीक है, यह सुनिश्चित करता है कि निर्णय लेने से पहले दोनों पक्षों पर विचार करे। जैन ने कहा कि शीर्ष अदालत का इस मामले में एक कदम आगे बढ़कर देवी की आंखों से पट्टी हटाने का फैसला सही फैसला है। अब भ्रम दूर हो गया है और लोगों को समझ में आ गया है कि न्याय की देवी अंधी नहीं हैं।